जैवप्रौद्योगिकी केन्द्र (आर. सी. बी.) की परिकल्पना भारत सरकार द्वारा भारत एवं इस क्षेत्र में जैवप्रौद्योगिकी में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान के लिए, युनेस्को के तत्वाधान में एक श्रेणी-2 केन्द्र के रूप में की गयी थी।
वर्तमान में चल रही जैवप्रौद्योगिकी क्रांति राष्ट्रीय सीमाओं से प्रतिबंधित नहीं है, और इस लिए यूनेस्को का सहयोग अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने के लिए, विशेष रूप से मानव संसाधन विकास के लिए, बहुत लाभकारी है। केन्द्र को हाल ही में भारतीय संसद के एक अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय महत्ता के संस्थान रूप में पहचाना गया है।
आर. सी. बी. संकाय ने विभिन्न बाह्य परियोजनाओं में संलग्न युवा अनवेषण पुरस्कार विजेताओं, शोधकर्ताओं और शोध कर्मचारियों के साथ मिलकर केन्द्र में जीवंत वैज्ञानिक वातावरण के लिए आवश्यक, महत्वपूर्ण द्रव्यमान प्रदान किया है। इनके साथ, समर्पित तकनीकी व प्रशासनिक कर्मचारियों ने केन्द्र के जनादेशों की पूर्ति के लिए संस्थागत संरचनाएं बनाई हैं। युनेस्को एवं जैवप्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोगियों का सहयोग भी समान रूप से मूल्यवान है।
आर. सी. बी. अभी एक नवजात संगठन है। 2010 में अपनी औपचारिक शुरुआत के बाद, आर. सी. बी. बदलते समय को समायोजित करते हुए अपने शोध प्रयासों में उच्चतम मानकों को स्थापित करके आगे बढ़ा है। हमने जैवप्रौद्योगिकी के बहुआयामी पहलुओं में अपने प्रयासों में तेजी लाई है। कई नए शोध कार्यक्रमों के साथ-साथ अनेक शैक्षिक और प्रशिक्षण गतिविधियों को शुरू किया है। निःसंदेह, यह आर. सी. बी., जो विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं मे से एक बनने को उत्सुक है, के निर्माण का एक रोमांचक चरण है। इसके लिए, आर. सी. बी. दुनिया भर के वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों और शिक्षाविदों के सहयोग का स्वागत करता है।
सुधांशु व्रती, पीएच. डी.